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Putting Children First. Preparing Children For Success In Life

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ऊफ! मार डाला इस गर्दन के दर्द ने

सिरोही। गर्दन का दर्द इतना विकट होता है कि पीडि़त इससे इतना बैचेन हो जाता है कि कोई बात भी करे तो उलझना का मन करे। ना इधर दिखे ना उधर। बस कराहट की दुखदायी। यह दर्द अधिकतर वयस्कों में होता है। मेरुदंड की कशेरुका, मांसपेशी और स्नायूबंध से ये दर्द जुड़ा होता है। इसके मुख्य विशेष है गर्दन अकडना और पीठ में दर्द। कुछ दिनों के लिये ये कम होता है लेकिन फिर उमडता है। कामकाज की स्थिति आंगिक या मानसिक तनाव इससे भी इसका नाता है। मेरुदंड में स्थित कशिरुकाओं के दरम्यान चक्र घीसकर और दबकर यह बीमारी होती है। मेरुदंड से निकलनेवाली तंत्रिकाओं को इससे बाधा पहुंचती है। । बढते उम्र में ये एक सामान्य प्रक्रिया होती है। व्यायाम का अभाव तथा गलत स्थिती में कामकाज करना, लंबे समयतक गाडी चलाना सर पर बोझ ढोना इन कारणों से बीमारी को बढावा मिलता है। वैसे ही कंप्यूटर इस्तेमाल करने से इसकी बाधा बढती है। सुबह के समय गर्दन अकडना, गर्दन के पिछेवाले हिस्से में और सर के पिछे दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण है। गर्दन, पीठ और कंधे के मांसपेशियों में दर्द होता है। कुछ बिंदू ज्यादा दर्दनाक होते है। गर्दन आगे झुकाने से दर्द सामान्यत बढता है। कुछ लोगों को गर्दन बाजू में घुमाते समय घिसने का और अंदरुनी आवाज का अनुभव होता है। बीमारी के बढते हाथ, अंगुठा, कलाई आदि अंगों में दर्द और संवेदनहीनता महसूस होती है।  कोई भी दर्दनाशक गोली से तुरंत आराम मिलता है। सौम्य तेल मालिश से भी कुछ आराम महसूस होता है। कुछ मर्म बिंदू दबाने से दर्द कम होता है। बीमारी के चलते गर्दन में कॉलर लगाना उपयोगी होता है। खांसकर यातायात में कॉलर अवश्य प्रयोग करे। कॉलर सही चौडाई की लेना जरुरी है। लेकिन यह सारे उपाय तत्कालिक है। ज्यादा महत्त्वपूर्ण है मांस पेशियों को दृढ करना और सही स्थिती में काम करना। गर्दन और पीठ के लिये विशेष व्यायाम होते है। जैसे की भुजंगासन या लाठी घुमाना। मांसपेशी स्वास्थ्यपूर्ण होने से गर्दन का दर्द अपने आप कम होता है। भोजन में फल, सब्जी, विटामिन ई आदि जंगरोधी तत्त्व होना जरुरी है। यौगिक प्रक्रिया में भुजंगासन, मार्जारासन, शलभासन, शवासन, शिथिलीकरण और दीर्घश्वसन विशेष उपयुक्त साबित होते है। इसके लिये योग शिक्षक की मदद लेना चाहिये। सोते समय कंधा और गर्दन के नीचे कम चौडा तकिया मुलायम सिरहाना रखे। सिरहाना सिर के नीचे नही होना चाहिये। सिरहाना न हो तो टरकिश तौलिया का इस्तमाल कर सकते है। डॉक्टरी इलाज में गर्दन के लिये वजन लगाकर मेरुदंड थोडा खिंचा जाता है। इसका उपयोग तत्कालिक और मर्यादित है। तंत्रिका दर्द असहनिय होने पर ऑपरेशन जरुरी हो सकती है। इसके लिये विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिये। अब इसके लिये दूरबीन से ऑपरेशन संभव है। इसके कारण इलाज अब आसान हो गया है। आदमी काम करते समय हमेशा आगे झुककर करता है। पीठ और गर्दन के स्वास्थ्य के लिये इससे विपरित क्रिया भी जरुरी है। पीठ के मांसपेशी दुबले होने के कारण मेरुदंड की बीमारी होती है। सही स्थिति में कामकाज करे। नियमित रुप में व्यायाम करने से गर्दन का दर्द हम टाल सकते है। यातायात करते समय गर्दन में कॉलर पहने, खांसकर खराब रास्ते पर इसकी जरुरी है। टेबुल कुर्सी का काम भी ज्यादा हो तब आधे घंटे के अंतरालसे कुछ विश्राम और बदलाव होना चाहिये।  बायफोकल चश्मे से ज्यादा नुकसान होता है। भोजन में पर्याप्त प्रथिन, आँटिऑक्सिडंट, और चुना होना चाहिये। इससे बीमारी की रोकथाम होती है। व्यायाम भी जरुरी है। 

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